Tuesday, October 11, 2011

मन

गूँज रही थी जो कानो में आवाज़,
आज उसी गूँज में खो जाने का मन है
छू गयी थी जो बचपन की कुछ बातें
आज उन्हें बातों को दोहराने का मन है

भाग कर आया हूँ जिस घड़ी से मैं
आज उसी पल से टकराने का मन है
लड़ा था जो समुन्द्र की लहरों से 
आज उन्ही लहरों में भए जाने का मन है

रखें हैं जो खयालों पर पत्थर 
आज उन्ही पर्वतों को पिघलाने का मन है
हज़ार जो बातें करी है सबसे 
आज उन कुछ बातों को आज़माने का मन है  

आज नहीं रुकुंगा किसी मोड़ पर मैं
उस दीवाने रास्ते को डराने का मन है 
ख़ुशी के जो लम्हे बाँटें थे सबसे
आज उन्ही लम्हों से घबराने का मन है

सोच रहा हूँ आज मैं खुल कर
तुम ही बतायो मेरा क्या मन है?
ज़िन्दगी से लम्बी कोई तकदीर नहीं 
पल पल इसे जी जाने का मन है...